मेरा गाँव पूरा गांव अपना था , आम ,महुआ , पीपल , नीम का छांव अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे गांव के लोग अपने थे , कुआं , गड़ही ,पोखर , दूर तक फैला ताल अपना था , बस तुम अजनबी थे | पूरे खेत - खलिहान अपने थे , ओल्हापाती , चिक्का गोली ,गिल्ली डण्डा , खेल सामान अपने थे , बस तुम अजनबी थे | अब तुम अपने हो , सब अजनबी हैं | तुम (नौकरी ) अजनबी हो जाओ ||
सुच्चा बनारसी
कुछ दिन बनारस क्या रहे ,खुद को बनारसी समझने लगे,
जहां तहां आत्म विश्वास से लबरेज , घूमने टहलने लगे ,
मंदिर ,घाट हो सड़क हर जगह बनारसी होने का दम्भ भरने लगे ,
न वो सरदार रहे न सरदारी ,पर जहां खुला देखे लंगोटा कस दंड मारने लगे ,
प्रणाम -नमस्ते औ राम -राम तज, अभिवादन श्रेष्ठ महादेव कहने लगे ,
गंगा में डुबकी लगाकर हर हर गंगे कह दूर तक तरने लगे ,
लस्सी ,मलाई ,ठंडई ,मलईयो छके और मुंह में पान धरने लगे ,
बोली -आचार , व्यवहार और आहर में बनारसी वरण करने लगे ,
महाश्मशान की भभूत और माथे पर तिलक का श्रृंगार करने लगा ,
हमारा बनारस और खुद को घनीभूत बनारसी समझने लगे,
पर एक दिन संयोग हुआ घनघोर बनारसी से , जल ढारने में वाद करने लगा ,
मैं भी खुद को बनारसी बता आगे बढ़ने लगा ,
उसने बात की और बात - बात में बात पकड़ने लगा , मैं बनावटी बनारसीपने से अकड़ने लगा ,
उसने मेरी सारी अकड़ निकाल दी और महादेव पर पहला अपना अधिकार कहने लगा ,
मुझे ज्ञान मिलने लगा ,बनारस का होना और बनारसी दोनो अलग लगने लगा ,
वो गुरु निकला ,मेरा तो बस गुरुर था ,
तन से बलशाली और मन से स्थिर था ,
वो बनारसी अहीर था ||


हर-हर महादेव 🙏
ReplyDeleteबनारसी बनने का गुरूर ही कुछ और है
ReplyDeleteबनारसी पान और बनार्स
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